दमा, खांसी, दिल के रोग

दमा , खांसी , दिल के रोग के लिये कारगर है पीपल पीपल का पेड़ न एक पवित्र धार्मिक वृक्ष ही है बल्‍कि इसे स्वास्थ्य के लिए भी अति उपय... thumbnail 1 summary
दमा, खांसी, दिल के रोग के लिये कारगर है पीपल

पीपल का पेड़ न एक पवित्र धार्मिक वृक्ष ही है बल्‍कि इसे स्वास्थ्य के लिए भी अति उपयोगी माना गया है। यह विशाल पेड़ 24 घंटे ऑक्सीजन देता है इसलिये यह काफी कीमती पेड़ों में से एक भी है। आयुर्वेद में बताया गया है कि पीपल का हर भाग जैसे तना, पत्ते, छाल और फल सभी चिकित्सा में काम आते हैं। इनसे कई गंभीर रोगों का भी इलाज संभव है। गठिया रोग के दर्द को भगाने के 10 घरेलू उपाय पीपल के पेड़ की पत्‍तियां रक्त पित्त नाशक , रक्त शोधक , सूजन मिटाने वाली, शीतल और रंग निखारने वाली मानी जाती हैं। पीलिया, रतौंधी, मलेरिया, खाँसी और दमा तथा सर्दी और सिर दर्द में पीपल की टहनी, लकड़ी, पत्तियों, कोपलों और सीकों का प्रयोग का उल्लेख मिलता है। आइये जानते हैं पीपल हमारे स्‍वास्‍थ्‍य को निखारने में किस प्रकार असरकारी है।

जुकाम, खांसी और दमा में लाभ पीपल के पांच पत्तों को दूध में उबालकर चीनी या खांड डालकर दिन में दो बार, सुबह-शाम पीने से जुकाम, खांसी और दमा में बहुत आराम होता है।

आंखों के दर्द के लिये इसके पत्तों से जो दूध निकलता है उसे आँख में लगाने से आँख का दर्द ठीक हो जाता है।

दांतों के लिये फायदेमंद पीपल की ताज़ी डंडी दातून के लिए बहुत अच्छी है।

नकसीर में आराम पीपल के ताज़े पत्तों का रस नाक में टपकाने से नकसीर में आराम मिलता है।

पैरों की फटी एडियां ठीक करे हाथ -पाँव फटने पर पीपल के पत्तों का रस या दूध लगाए।

पीपल की छाल से काढ़े या फॉट से कुल्ला करने से दांत दर्द में आराम मिलता है और मसूढ़े मजबूत होते हैं। जख्मों को छाल के काढ़े से धोने से वे जल्दी भरते हैं। जख्मों पर यदि खाल न आ रही हो तो बारीक चूर्ण नियमित रूप से छिड़कने पर त्वचा आने लगती है। जलने से बने फफोलों या घाव पर भी छाल का चूर्ण बुरकना चाहिए।

छाल को घिसकर फोड़े पर लेप करने से यह तो बैठ जाता है या फिर पककर फूट जाता है। विसर्प की जलन शांत करने के लिए छाल का लेप घी मिलाकर किया जाना चाहिए। हड्डी टूटने पर छाल को बारीक पीसकर बांधने से लाभ मिलता है। छाल को पीसकर लेप करने से रक्तपित्त विकार शांत होता है। साथ ही रोगी को इसके काढ़े से स्नान कराना चाहिए।

कान में दर्द के उपचार के लिए पीपल के कोमल पत्ते पीसकर उसे तिल के तेल में हल्की आंच पर पका लें फिर इसे ठंडा कर लें और हल्का सा गुनगुना रहने पर कान में डालने से तुरंत आराम मिलता है। पैरों की एडि़यां फटने या त्वचा के फटने पर उसमें पीपल का दूध लगाया जाना चाहिए।

सांप काटने पर सांप काटने पर अगर चिकित्सक उपलब्ध ना हो तो पीपल के पत्तों का रस 2-2 चम्मच ३-४ बार पिलायें। विष का प्रभाव कम होगा।

बांझपन दूर करे इसके फलों का चूर्ण लेने से बांझपन दूर होता है और पौरुष में वृद्धि होती है।

पीलिया होने पर
पीलिया होने पर इसके ३-४ नए पत्तों के रस का मिश्री मिलाकर शरबत पिलायें। ३-५ दिन तक दिन में दो बार दे।

हकलाहट दूर करे इसके पके फलों के चूर्ण का शहद के साथ सेवन करने से हकलाहट दूर होती है और वाणी में सुधार होता है।

दमा की बीमारी दूर करे इसके फलों का चूर्ण और छाल सम भाग में लेने से दमा में लाभ होता है।

पीपल के अकुंरों को मिलाकर पतली खिचड़ी बनाकर खाने से दस्तों में आराम मिलता है। यदि रोगी को पीले रंग के दस्त जलन के साथ हो रहे हों तो इसके कोमल पत्तों का साग रोगी को दिया जाना चाहिए।

पेचिश, रक्तस्राव, गुदा का बाहर निकलना तथा बुखार में पीपल के अकुंरों को दूध में पकाकर इसका एनीमा देना बहुत लाभकारी होता है। पीपल के फल भी बहुत उपयोगी होते हैं। इसके सूखे फलों का चूर्ण पानी के साथ चाटने से दमा में बहुत आराम मिलता है। खांसी होने पर इसी चूर्ण को शहद के साथ चाटना चाहिए। दो माह तक लगातार नियमित रूप से इस चूर्ण का सेवन करने से गर्भ ठहरने की संभावना बहुत बढ़ जाती है।

पीपल के फल, जड़ की छाल और कोंपलों को दूध में पकाकर छान लें। इसमें शहद या चीनी मिलाकर पीने से पुंसत्व शक्ति बढ़ती है। पीपल की जड़ के काढ़े में नमक और गुड़ मिलाकर पीने से तीव्र कुक्षि शूल में शीघ्र लाभ होता है। पीपल की सूखी छाल को जलाकर जल में बुझा लें। इस जल के सेवन से उल्टी तथा प्यास शांत हो जाती है।

शुक्र क्षीण होने तथा छाती में जख्मों की स्थिति में पीपल की छाल के काढ़े में दूध पकाकर जमा दें। उससे निकाले गए घी में चावल पकाकर रोगी को खिलाने से आराम मिलता है। यदि मूत्र नीले रंग का आता हो तो रोगी को पीपल की जड़ की छाल का काढ़ा दें।

प्रमेह विकारों में पीपल के 6 ग्राम बीज हिरण के सींग का दंड बनाकर घोंट लें और इसमें शहद मिलाकर छाछ के साथ इसका सेवन करें। गनोरिया में भी पीपल की छाल बहुत उपयोगी है। विभिन्न यौन विकारों में पीपल के काढ़े से योनि प्रक्षालन को श्रेष्ठ माना गया है। मूत्र तथा प्रजनन संहति के पैत्तिक विकारों में पीपल की छाल के काढ़े में शहद मिलाकर सेवन करने से तुरन्त लाभ मिलता है।